आज़ का दौर कितना बदल गया है , लोग अपने घर की इज्जत को ढकने में लगे हैं और दूसरो की इज्जत पर सवाल उठा रहे है , आदमी से जल रहा है
दौर को बदलना। हमारा कर्तव्य बन गया है। दौर को बदलना? हमारा कर्तव्य बन गया है। खुद की संतान को अच्छे संस्कार देने का मौका है खुद की खुद की संतान को अच्छे संस्कार देने का मौका है आदमी। आदमी से जल रहा है। आज का दौर। कितना बदला?
Jagreeti sharma
@voicequeen · 1:44
जुनून के आग को। पर। मंजिल की तलाश में। न भूल? तो अपने आधार को? पर। मंजिल की तलाश में। न भूल? तो अपने आधार को। हमें अपने संस्कारों को कभी नहीं भूलना चाहिए। अपने कपियों को कभी नहीं भूलना चाहिए। भले हम कितने ही उन्नति कर लें, तरक्की कर लें। हमें अपने संस्कारों से? या अपने जड़ों से? जुड़े रहना चाहिए। क्योंकि वृक्ष वही सीधा खड़ा हो पाता है। तूफानों में रहता है। जो जड़ों से जुड़ा होता है। और जो जड़ से उखड़ गया वो टूट जाता है। आपकी कविता बहुत अच्छी लगी।
Rashmi Gautam
@krishndiwaniRG · 1:23
सारे रूल्स लाद दिए जाए। उसको ही कहा जाए कि आप ऐसे कपड़े मत? पहनो। आप यहां मत जाओ। वहां मत जाओ। तो ये चीज आपने बहुत ही अच्छी तरीके से अपनी कविता के द्वारा माध्यम से बहुत ही अच्छी तरीके से आपने दर्शाई है। और आपकी कविता में 1 वास्तविकता झलकती है। जो आज कल हमारे घरों में देखने को मिलता है। जैसे की लड़के अपनी प्रेमिकाओं पर बहुत पैसा उड़ा रहे हैं। और उनके माँ बाप 2 रोटी को भी तरस रहे हैं। तो बहुत ही अच्छी। आपकी कविता है। शिक्षाप्रद।
Swell Team
@Swell · 0:15
Laxmi Dixit
@vicharnama · 2:11
उसको फुल इंडिपेंडेंस मिलती है। आज के दौर में। जो माँ बाप अपने बेटों को पढाने में, उनका भविष्य बनाने में, अपने पु पूरा जीवन खपा देते हैं। वहीं बेटे जब नौजवान हो जाते हैं। अपना परिवार बसा लेते हैं। तो वो माँ बाप उनके लिए सिर्फ 1 बोझ बन जाते हैं। उनको अपने माँ बाप को 2 वक्त की रोटी देना भी बहुत भारी लगने लगता है। आपने अपनी कविता के माध्यम से आज के समाज का बहुत ही मार्मिक चित्रण किया है। आपका। प्रस्तुतीकरण भी बहुत अच्छा है। शो की राइटिंग। और ऐसे ही हमें सुनाते। रहिये।