हम सभी साथ हैं।
आपने जो कहा था वो बिल्कुल सही था? तो हम सोचते हैं कि हम सब 1 साथ हैं? पर सच यह है कि हम सब साथ नहीं हैं। हमारे मन में स्वाद इच्छा ऐसे कई बार हैं जो हम सब को एकता के सूत्र में बांधने और बंद होने नहीं दे रही है। जब तक हमारे मन में स्वार्ड इच्छाएं सब कुछ पूरी तरह से मिट नहीं जाता, तब तक हम कभी 1 दूसरे का साथ नहीं दे सकते हैं? और 1 दूसरे का साथी नहीं बन सकते हैं। थैंक यू?
आजकल आधुनिक सोच में हम यह भूल चुके हैं कि हम सब इंसान हैं। और हमारी 1 जीवन की नियत सीमा है। रही शारीरिक और मानसिक भावनाओं की तो वो तो हम जीवन में अपने मन के मांग मन के भावों पर काबू करके या अपनी सोच और साथ निभाकर कर सकते हैं परंतु आज के दौर में पहले तो हमें 1 दूसरे का सहयोग और विश्वास ऐतबार की जरूरत ज्यादा है। धन्यवाद? थैंक यू।