Garima Mishra
@GarimaMishra · 1:01
तुम्हें क्या लिखूं..?!
तुमसे बहुत सी बातें की है। मगर तुम्हे छूने से पहले ही सवेरा हो जाता है। मैं कितने ही कागज भर लूं? तेरी याद में। हर नज्म अधूरा रह जाता है। और फिर इसी सोच में रह जाती हूँ? मैं। तुम्हें कितना लिखूँ? तुम्हे? क्या लिखूँ? तुम्हे? सब कुछ? तो लिख दिया? अब? और क्या? क्या? लिखू?
ह**ो? आयम? आशिका? तुम्हें क्या लिखूं? मैं भी 1 बार मतलब कुछ लिखने बैठी थी अपनी कलम के साथ। तो मैंने सोचा। मैं अपनी कलम से क्या लिखूं। मैं अपने माँ बाप के लिए क्या लिखूं? लेकिन सोचते ही सोचते मन में आया कि उन्होंने 9 महीने माँ ने मुझे पेट में रखा था। और उसके बारे में मैं क्या लिखूं? जिन्होंने मुझे सब कुछ दिया। मैं उनके एहसानों के बारे में क्या लिखूं। उनका मैं उनके उनके गुणगान का कितना ही बखान क्यों न कर दूं? लेकिन उनका गुणगान कभी हो नहीं पायेगा।