वक्त बदलता है, इनसान बदलते है। इसी उधेड़ गुन में जजबात बदलते हैं। अपना पराया, पराया अपना। हर घड़ी किरदार बदलते हैं। दिलों दिमाग के दर्मिया, रिष्टे नाते कश्मकश्मे पनपते हैं। सोचो तो कितना अजीव लगता है, अगर �
वक्त बदलता है, इनसान बदलते है। इसी उधेड़ गुन में जजबात बदलते हैं। अपना पराया, पराया अपना। हर घड़ी किरदार बदलते हैं। दिलों दिमाग के दर्मिया, रिष्टे नाते कश्मकश्मे पनपते हैं। सोचो तो कितना अजीव लगता है, अगर �