@Vipin0124
Vipin Kamble
@Vipin0124 · 2:18

मेरा शहर कुछ कह जाता है……

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कमर कस के काम पर निकल जाता है। मेरा शहर। बहुत कुछ कह जाता है। बाढ़ की बारिश से, सुनामी की मार से। कभी नहीं घबराता है। गणपति? ईद, दशहरा, दिवाली, सबके साथ। मिलकर मनाता है। गगनचुंबी। इमारतों का मुकुट। सजाए। विशाल, समंदर के सामने, सीना तान के खड़ा हो जाता है। मेरा शहर। चुप रहता है। फिर भी। बिना बोले। सब कुछ कह जाता है। बहुत बहुत धन्यवाद। आप सभी को सुनने के लिए। अपनी प्रतिक्रिया, अवश्य व्यक्त कीजिएगा।

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@kalakalyani1
kala vyas
@kalakalyani1 · 0:38
वाह? क्या? बात? कही? यकीन हो गया कि जब पत्थर को निरंतर पूजा जाता हैं तो वो भगवान बन जाता है। भीड़भाड़ वाली जिंदगी को आप जैसे 1 फूल महक जाता है। वक्त की मार तो सबको सहनी पड़ती है। मार खाते? खाते। जो मुस्कुराए, वही तो इंसान कहलाता है। आपकी। कविता सुन के। मुझे। बहुत अच्छा लगा। मोदी जी की यह बात याद आ गई कि माना की अंधेरा घना है। लेकिन दिया जलाना कहाँ मना है? आप? ऐसे ही कविता लिखते रहे। हमें।
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