जो भी है बट हर इंसान 1 जैसा नहीं सोच सकता है? तो हम ये एक्सपेक्टेशन अगर अपने दिमाग से निकाल देंगे? तो शायद बहुत सारे ऐसे एक्सपेक्टेशन जो उससे जुड़ जाते हैं न? सिर्फ? उस वजह से वो भी कहीं न कहीं खत्म हो जाएंगे? और ये इमोशनल ब्रेकडाउन? या फिर ऐसा कुछ? हर्ड? ब्रिग? जैसी? चीज? या हर्ट होना? ये सब नहीं होगा? तो आप बताइएगा? जरूर कि मैं कहां तक सही हूं? या फिर मैं गलत हूँ? क्या कि जैसे जैसे मैं हूँ वैसे ही सारी दुनिया तो नहीं हो सकती न? बत? कहीं न? कहीं?
हाय अदीबा आपने जो कहा था वह बिल्कुल सही था। हम हरपल ऐसा सोचते हैं कि हम जैसा है। हमारे सामने वाले भी ऐसा ही होना चाहिए। पर हम इस बात को नजरअंदाज कर देते हैं कि हम सब अलग है। हम सबका पहचान लगे। हम सब का सोच अलग है। हम सबका बर्ताव अलग है। और हम सबका अपने अपने ओपिनियन से, अपने अपने हिसाब से हम चलते हैं। जब भी हम दूसरों को हमारे जैसा बनने की बनने के लिए विवश करते हैं। तब सब कुछ बदल जाता है। उसे जो ऐसा एक्सपेक्टेशन है उसकी वजह से हमारे बीच का रिलेशन भी अटक जाती है। तो हमें यह समझना चाहिए कि हम सब अलग हैं? तो दूसरों को भी हमारे जैसे बनाने के लिए?