ओशो कहते हैं दोस्ती शुद्ध प्रेम है ये प्रेम का सबसे सर्वोच्च रूप है जहाँ कुछ भी मांगा नहीं जाता, कोई भी शर्त नहीं होती जहाँ बस देने में ही आनंद आता है यह सच्चे एवं विशुद्ध प्रेम की बात हो रही है प्रेम में तुम स्वयं ही प्रेम हो जाते हो और प्रेम ही तो परमात्मा है जब तुम प्रेम रूप हो जाते हो तो 1 घटना तुम्हारे भीतर घट जाती है तुम अपनी ही मस्ती में जीने लगते हो अपनी मस्ती एवं खुशी के लिए अब तुम किसी के मोहताज नहीं रह जाते बाहर परिस्थितियां कैसी भी हो तुम अपनी प्रेम मई मस्ती को सहेजना सीख जाते हो जब तुम प्रेम में होते हो तो तुम्हें झुकना भी आ जाता है अब तुम व्यर्थ के पचड़ों में कलह क्लेश से स्वयं को बचा कर रखना जान जाते हो बाहर तुम्हे कोई कितना भी परेशान करे, दुखी करे टेंशन दे पर अब तुम इन दुखद परिस्थितियों से बच कर निकलना जान जाते हो क्योंकि तुम क्षमाशील हो गए हो तुम ऐसी स्थिति में जब तुम अंदर बाहर से प्रेम में रंगे गए हो तो तुम एकांत में भी अपनी ही मस्ती एवं अपनी ही खुशी में रहने लगते हो हर क्षण तुम्हारा उत्सव हो जाता है क्योंकि अब तुम स्वयं ही प्रेम हो गए हो अब तुम्हारे प्रेम का दायरा विस्तृत हो गया है संकीर्ण नहीं है, सिमटा हुआ नहीं है इसलिए तुम सबके हित में काम करोगे किसी को पीड़ा नहीं पहुंचाओगे, किसी से कुछ नहीं मांगोगे बल्कि तुम तो लुटाते हो क्योंकि तुम प्रेम में हो तुम अंदर बाहर प्रेम से सराबोर हो गए हो इसलिए ही तो लुटा रहे हो, बांट रहे हो सबको प्रेम विशुद्ध प्रेम खालिस प्रेम।
shilpee bhalla
@Shilpi-Bhalla · 0:10
ह**ो विना जी बहुत खूबसूरत प्यार की व्याख्या और अंतर्मन को छू लेने वाले वाक्यों के साथ आपने इसको बताया बहुत सुंदर।
veena ahuja
@veenaahuja · 0:03
veena ahuja
@veenaahuja · 0:36
हैलो शिल्पी जी आपको मेरा ये मोटिवेशनल पे शुद्ध प्रेम पसंद आया बहुत बहुत धन्यवाद तो देखो यही प्रेम ही तो हमारे जीने का मकसद है न यही हमारा अंतिम लक्ष्य है प्रेम को प्राप्त करेंगे तभी हमारा जीवन सफल है और हम खुद भी खुशी खुशी अपना जीवन बिताएंगे औरों को भी जीने का मौका देंगे तो यही हमारा सुंदर जीवन है थैंक्यू शिल्पी जी।