मैं बदल गई हूँ ये शीर्षक है मेरी कविता का। मैं बदल गयी हूँ लोग कहते हैं मैं आजकल बहुत बदलती गई हूँ हाँ ये सच है कि मैं बहुत बदल गयी हूँ औरों के लिए जी हूं बहुत अब मैं खुद के लिए भी जीने लगी हूँ हर काम जो मुझे अच्छा लगता था कभी पर कर नहीं पाती थी मजबूरन अब अपनी खुशी के लिए उसे सबसे प्यार पहले मैं करने लगी हूँ हाँ अब मैं बदल गयी हूँ ख्याल रखती हूँ अब भी सबका पर खुद का ख्याल सबसे पहले अब मैं रखने लगी हूँ खुद को बेहतर बनाने की कोशिश में जो भी मुझे लगता है ठीक उसे अब मैं करने लगी हूँ माना की जिंदगी की आपाधापी में खुद को भूल ही बैठी थी मैं औरों की हाँ में हाँ मिलाती थी उनके ना कहने पर मैं भी ना कर देती थी? नहीं नहीं अब मैं अपने मन का करती हूँ दिल नहीं कहता तो किसी बात पर कभी नहीं कहती हूँ मन का करती हूँ अब मन मजबूत कर लिया है इरादे इतने मजबूत कि हर किसी की बात पर पिघलना छोड़ बैठी हूँ हाँ मैं सचमुच बदल गई हूँ यह सच है कि मैं बदल गयी हूँ मैं मानती हूँ कि मेरा भी अस्तित्व है यह मैं जान गई हूँ ये जिंदगी 1 ही मिली है मुझे जीना इसे खुद के लिए भी तो सब का साथ देते देते मैं कब अपनी हमजोली बन बैठी याद नहीं? पर यह सच है कि मैं अब भी औरों के लिए भी जीती हूँ पर अब अपने लिए भी जीना सीख लिया है अपनी खुशी के लिए। जीती हूँ मनोबल बढ़ाते बढ़ाते 1 मंजिल भी पा ली है मैंने बहुत कुछ पाने की चाहत है अब भी 1 मुकाम बनाना चाहती हूँ अपना औरों को साथ लेकर 1 काफिला बनाना चाहती हूँ सबसे निभा कर तो चलूंगी अब भी पर खुदी को मिटाकर नहीं गमारा मुझे अब क्योंकि खुद को गमा कर कुछ भी न बांट पाउंगी मैं औरों में मैं कुछ देना चाहती हूँ कुछ बांटना चाहती हूँ इसलिए खुद को भरपूर करना चाहती हूँ देने के वास्ते सब रास्ते खुले हैं मेरे सबके साथ सब के लिए और सबसे पहले मैं खुद अपने ही खातिर जीना चाहती हूँ हाँ मैं बदल गई हूँ अब जीने का भरपूर आनंद लेना चाहती हूँ पल पल इसलिए न कहने में भी झिझकती नहीं हर किसी से मैं उलझती भी नहीं पर हां जो करना होता है कर ही गुजरती हूँ धीरे धीरे जिंदगी की राहों पर चल निकली हूँ तेज रफ्तार से अब मंजिल की ओर रुक है मेरा है अपनों का साथ लिए हूं खुद का संबल साथ साथ कुछ कर गुजरूंगी कुछ बदलने का जीवट लिए साथ यात्रा मेरी जारी है रुकेगी अब सिर्फ और सिर्फ वे अपनी मंजिल के शिखर।
Discover_With_ Mamta
@Mamta09 · 1:12
ऐसा नहीं कि तुम्हें देखूंगी। नहीं? ऐसा नहीं कि तुम्हें सपोर्ट नहीं करुंगी? बट? हां? पहले मेरे इरादे होंगे? पहले उनकी कामयाबी होंगी? और साथ साथ तुम्हारे साथ चलूंगी? जितना तुम साथ दे पाओ? तो? हां? मैं भी बदल गई हूं? बहुत सुंदर। विना जी। बहुत सुन्दर।
veena ahuja
@veenaahuja · 1:50
ममता जी बहुत अच्छा लगा कि आपने मैं जो कहना चाहती थी आपने हू? बहु? उसको समझा है। और बिल्कुल ठीक समझा है। मैं यही कहना चाहती थी कि जो स्त्री है वो बहुत स्ट्रोंग है। और धीरे धीरे जैसे जैसे उसको लाइ में एक्सपीरियंस होता जाता है तो उसको 1 मुकाम पे आ के यह समझ में आता है कि मैं भी कोई गैर मामूली नहीं हूं। मेरे अंदर बहुत पोटेंशियल है। मैने उसको भी उजागर करना है। सबको साथ लेके तो मैं जरूर चलूंगी लेकिन अपने आप को गंवा कर? कतई? नहीं? मैंने अपने आप को भी निखारना है? संवारना है?