@veenaahuja
veena ahuja
@veenaahuja · 4:12

P0em...

मैं वीना आहूजा आपको आज 1 अपनी कविता सुनाना चाहती हूँ जो मेरी पुस्तक खिलते गुलाब में से हैं आशा है आपको पसंद आएगी और सुन कर अपने सुझाव अवश्य दीजिएगा प्लीज कविता का शीर्षक हैं गणित जिंदगी का गणित जिंदगी का आज जब जिंदगी का लेखा जोखा करने बैठी हूँ आज जब जिंदगी का लेखा जोखा करने बैठी हूँ तो न जाने कितने सवाल उठ रहे हैं मेरे जहन में तो न जाने कितने सवाल उठ रहे हैं मेरे जहन में क्या खोया, क्या पाया, क्या खोया, क्या पाया शुरुआत से ही अपने में संतुष्ट मगर उतनी ही मजबूत रहे मैं किसी को नकल करने का कभी मन ही न हुआ किसी को नकल करने का कभी मन ही न हुआ हर बार लगता कुछ हट कर करना है, हर बार लगता कुछ हट कर करना है इसी धुन में यह बात घर कर गई कि अपने भीतर तो जाना ही है इसी धुन में यह बात घर कर गई कि अपने भीतर तो जाना ही है पर उससे भी जरूरी है हर मन को पढ़ने की कोशिश करना पर उससे भी जरूरी है हर मन को पढ़ने की कोशिश करना विस्तार से संवेदनशील होकर दूसरों के मन को समझना विचार से संवेदनशील होकर दूसरों के मन को समझना मानो मेरा शौक बनता चला गया मानो मेरा शौक बनता चला गया संघर्ष भी किया बहुत पर संभाले रखा खुद को संघर्ष भी किया बहुत पर संभाले रखा खुद को इसी बीच अपने लिए क* औरों के लिए कुछ ज्यादा ही सोचने लगे इसी बीच अपने लिए क* औरों के लिए कुछ ज्यादा ही सोचने लगे शायद उसी वजह से आज इतना कुछ पा रही हूं शायद उसी वजह से आज इतना कुछ पा रही हूं जिसकी कभी सपने में भी कल्पना न की थी न ही कोई मेरी औकात थी और छोर से रहमत की बात बरसात हो रही है और छोर से रहमत की बरसात हो रही है यही चाहती हूँ कि थोड़ा बहुत सबको गरीब, अमीर छोटे बड़े मित्र संबंधी लाचार अनाथ सब के दिलों में झांकती रहू प्यार बांटती रहूं क्योंकि अनंत गुना ये प्यार मुझ तक लौट रहा है और भिगो रहा है मेरा तन मन इसे प्रभु कृपा कहूँ या कुछ और समझ नहीं आता इसे प्रभु कृपा कहूँ या कुछ और समझ नहीं आता थैंक यू।
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