Urmila Verma
@urmi · 2:12
"दिल को यूं लुभा के गये हैं "
मैं उर्मिला। वर्मा अपनी रचना प्रस्तुत कर रही हूँ। सुनिएगा चाशनी में तर थी। वो बातें। चाशनी में। तर। तर थी। वो बातें। दिल को। यूं लुभा के गए हैं। दिल को। यूं लुभा के गए हैं। बार बार। मिन्नतें जो की थी। बार बार। मिन्नतें जो की थी। तो 1 बार, आगे गए हैं? तो 1 बार आगे गए हैं। तारीफ के पुल भी न। बांधे, तारीफ के पुल भी। न। बांधे। न्यूं। मुझे सता के गए हैं।
Jyotsana Rupam
@SPane23 · 1:21
गुड? मॉर्निंग? उर्मिला। मैम। आपकी। जो पेट्री है। दिल को। यूं। लुभा के गए हैं। सचवि। दिल को। लुभा ले गए है। चाशनी में। डुबा के गए हैं। बार बार मिनटें करने पर। 1 बार आगे गए हैं। तारीफ के पुल भी बंद है। सता के गये हैं। मैं तो खामोश ही थी। वो तकरार करके गए। बहुत प्यारी लाइन है। बहुत ही प्यारी लाइन है। आपकी है इसमें। जो आपने लिखी हैं। 1 माशुका अपनी दीवाने को बुलाती है। और उसकी उम्मीदों पर। वो खरा नहीं उतरा।
बार बार मिलते जो की थी, बार बार। जो मिलते की थी। बार आगे गे हैं? तो 1 बार आगे गे है। तो जो सबसे अच्छी लाइन जो मुझे आपकी रचना में सी लगी। वो है। तारीफ के पुल पी ना बंदे, तारीफ के पुल भी न बंदे, यूं मुझे सताह के गे हैं। तो ऐसे ही उर्मिला जी लिखते रहिये। और हमें सुनाते रहिये। सदा खुश। ने धन्यवाद।