Urmila Verma
@urmi · 2:02
प्रेम की पुकार
प्रेम का ही। जंजाल में। छिपा है। प्रेम का ही जंजाल। पाना चाहते हैं। सभी। प्रेम। पाना चाहते हैं। सभी। प्रेम। किन्तु प्रेम को निभाने में? किन्तु प्रेम को? निभाने में? अक्सर हो जाती है? चुक? अक्सर हो जाती है? चूक। प्रेम तो है? सिर्फ देने का ही नाम। प्रेम तो है? सिर्फ देने का ही नाम। आशा करती हूं। मेरी कविता। आप सभी को। पसंद। आएगी। मैंने। बस। इसमें इतना ही कहना चाहा है कि प्रेम की सबको तलाश है।
Jaya Sharma
@jayasharma · 1:39
हेलो? उर्मिला जी। आपकी कविता बहुत अच्छी लगी। आपने प्रेम की परिभाषा बहुत ही सहज और सरल ढंग से दे दी है। इस कविता में। वास्तव में प्रेम होता ही देने का नाम है। प्रेम। किसी शब्दों में। प्रेम को किसी शब्दों में नहीं बांधा जा सकता न ही उसे परिभाषित किया जा सकता है। और सिर्फ यह महसूस करने का नाम है। और इसमें आपने बहुत ही सही ढंग से मतलब। इसको इस कविता को। कविता में प्रेम का वर्णन किया है। बहुत अच्छी लगी। आपकी कविता।