आप सभी को मेरा नमस्कार। 1। नई कविता के साथ उपस्थित हूँ। जिसका शीर्षक है तप्ती धूप। सुनिए। जीवन की तपती धूप में व्याकुल, मन हुआ। शांत। थके। जीवन की तपती धूप में व्याकुल, मन हुआ। शांत तक। संघर्षों का कोई अंत। न। दिखता। मन रहता। सदा भ्रमित। संघर्षों का कोई अंत। न दिखता, मन रहता। सदा भ्रमित। कब आएंगे। सुखद? जलद, जो देंगे। शीतल सी छाया?
Jagreeti sharma
@voicequeen · 1:32
तो आपकी कविता की ये पंक्तियां बहुत अच्छी है कि ऐसे समय में हमें ढैरे धारण करना चाहिए। आपने अपने मन को समझाते हुए कहा है कि हे मन ढैरे धारण करो। जीवन में कुछ भी चीज स्थाई नहीं होता। सुख के बाद दुख और दुख के बाद सुख आता जाता रहता है में। कठिन परिस्थिति में डरे धारण कर उसका सामना करना चाहिए और आगे बढ़ना चाहिए। आपकी कविता बहुत अच्छी लगी और प्रेरणा दायक भी है। जीवन जीने का सन्देश देती हुई। आप इसी तरह की कविताएं लिखते रहियेगा और हम सब को सुनाते रहिएगा। धन्यवाद।