Urmila Verma
@urmi · 2:58
शहर में ही खो गया है आदमी।
सांस लेने की विशुद्ध? हवा? नहीं? सांस लेने की विशुद्ध? हवा? नहीं? फिर भी? जिए जा रहा है। आदमी। फिर भी जिए जा रहा है। आदमी। रिश्ते। सारे? छूट गए हैं? हाथ से। रिश्ते। सारे? छूट गए हैं? हाथ से। अब। अकेला शहर में है? आदमी। अब अकेला शहर में है। आदमी? 2 जून की रोटी क*ाने के लिए? 2 जून की रोटी क*ाने के लिए। कितना बेबस हो रहा है? आदमी? कितना बेबस हो रहा है? आदमी? दौड़ कर? चढ़ता? ठसाठस? रेल में? दौड़ कर चढ़ता?
Jyotsana Rupam
@SPane23 · 2:06
थैंक यू सो? मच? मिला। मैं। इतनी अच्छी? पोयम? और सच्ची। पोयम। सुनाने के लिए। आपने जो वर्णन किया है। शहर का। कि शहर में हो गया? है? आदमी? 100? परसेंट। सही? बात। आपने कहा है? लोग? 1 उम्मीद लेके शहर जाते हैं? वापस? घर लौटने की? अपने गाँव लौटने की। लेकिन वो लौट नहीं पाते। घर में रहने वाले लोग उनकी उम्मीद में ही लगे रह जाते। और वो कहीं?
जाकर। हर चीज को समय से पहले मैनेज करना पड़ता है हमें? क्योंकि हर जगह हमें जाना है और वहां इतनी भीड़ है कि हर जगह आपको अपनी जगह बनानी है तो शहर में कहीं खो जाता है आदमी? इतनी व्यस्त उसकी जिंदगी हो जाती है वहां जाकर कि न वो अपने परिवार से उतना रख पाता है न ही।
Urmila Verma
@urmi · 2:49
आगे तो हमें मायूस नहीं होना है। और आपने लिखा कि हम सफर की तलाश है। हम सफर होना चाहिए। तो जरूरी नहीं कि हर समय हमारे पास कोई हो। हमारा जीवन साथी हो। जीवन में। हमें सफर सबसे सपोर्ट मिलता है। सबसे अपना पन मिलता है। सबसे। हमें बहुत सहायता मिलती है। चाहे वो मां का रिश्ता हो या बेटी का रिश्ता हो या किसी और का हो। भाई का हो। हमें हर रिश्ता हर रिश्ते की 1 महत्व महत्व है।
Meri Lekhani
@munnaprajapati1 · 0:31
नमस्कार जी मैं मुन्ना प्रजापति। मैंने। आपकी कविता सुनी। काफी बहुत खूबसूरत कविता है। आपकी। आपने जो वर्णन किया है, जो पक्तियों में बयां किया है वो बहुत खूबसूरत है। आपने। बहुत गहराइयों तक महसूस किया है। लिखा है बहुत बहुत शुक्रिया। बहुत अच्छा लगा। मुझे।
Swell Team
@Swell · 0:15
और अचानक से ये कह दिया गया कि अब बंद हो जाओ। अपने घर में। तो 1 अजीब सी। स्थिति तो जरूर थी। पर वो दौर ऐसा था। जो सबको प्रकृति ने बहुत बड़ा संदेश दिया था। कि जब सब अब गाड़ियां रुकी हुई थी। लोगों के भागम। भाग रुका हुआ था। लोग अपने ऊपर ध्यान दे पा रहे थे। कुछ ठीक से बना के खा पा रहे थे। तब यह पुरानी। परंपरा परा की। हाथ? धोके ही चीजों को लोग घर में आओ दूसरा। चप्पल? जूते?