ह**ो? एवरीवन? मैं आज अपनी 1 कविता सुना रही हूँ। धैर्य का बांध? इसका शीर्षक है? धैर्य का बांध। न टूटने दूंगी। खुद को बिखरने भी न दूंगी। चाहे जितनी हो? कठिन परीक्षा हो? कितनी बाधाएं? सब सह लूंगी? धैर्य कबाद न टूटने? दूंगी? खुद को बिखरने भी न दूंगी? ऐसा नहीं कि मैं कमजोर हूं, ऐसा भी नहीं कि नादान हूँ? हाँ चुप हूँ? शांत हूँ, सब रदार हूँ। सही वक्त के इंतजार में। मैं हूँ।
ना ही करो। धैर्य रख कर। कर्म? करो। फल की चिंता। तुम। न ही करो, ऐसा करो, वैसा करो, इसकी चिंता। तुम। मत ही करो। जुम्मन कहे तुम? बस, वही करो। ऐसी मतलबी दुनिया में। तुम। थोड़ा। संभल कर। चलो। जरा। आगे देख कर। चलो तुम। धैर्य रख कर? कर्म? करो, फल की चिंता। तुम। न ही करो। धन्यवाद।
Kunal Jain
@sonofindia · 1:39
और उसी के बेसिस पे जो है। आपको की जिंदगी फल देगी। और जहाँ तक ये सवाल है की उतना ही धैर्य रखो। और फल की चिंता मत करो। तो मेरे ख्याल से उसका आशय इस तरह से है की आप अपना कर्म तो करें। और फल पाने के लिए थोड़ा। बहुत धैर्य। जरूर रखे। इतना धैर्य की उसको आवश्यकता है। लेकिन यह सोच के करम करे की उस कर्म का कुछ न कुछ अच्छा फल। आउट क* निकलना चाहिए। वो आउट क* आपको। मिलता है? नहीं? मिलता है।
Swell Team
@Swell · 0:15
करके? करके दिखाना ही। तो जरुरी है। बस उतनी देर का। धैर्य जरुरी है। क्योंकि कई बार हम जल्दबाजी में गलतियां बहुत करते हैं। तो थोड़ा धैर्य रखे। जब हम अपनी मंजिल पाते हैं तो हमारी वो चीख। अपने। आप। जो कहते हैं न? कि कामयाबी? शोर मचाती हैं? तो वो ज्यादा अच्छी होती है। पहले से खुद से। शोर मचाने से। कोई फायदा नहीं है। वो जो शोर होता है वो बहुत ज्यादा तेज जाता है और दूर तक जाता है। थैंक यू आपने। बहुत अच्छा बोला।