अजीबो गरीब दास्ता है। मेरे सोचने विचारने की। मेरे दिल और दिमाग की। इंसान की। उम्र? ढलती है। जिंदगी की कीमतें जमीनी हो जाती है। हम अपनों में। इंसान की खरीदी? चीजें, बेश कीमती, बेहतरीन, कहते हुए कीमतें आसमां हो जाती हैं। हम अपनों में। अजीबो, गरीब दस्ता है। इंसान के जमीन को उठाने के लिए। न कोई देता है? अपना कंधा। इंसान के आसमां को पाने के लिए। हम अपने क्या अनजान भी दिखाते हैं। अपना कंधा।

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@Gamechanger
Ranjana Kamo
@Gamechanger · 0:04
very that pr woking thank you for sharing
@kadambarigupta
Kadambari Gupta
@kadambarigupta · 0:14
नमस्कार सर। जय माता दी। आपकी। कविता बहुत अच्छी थी। बहुत अच्छी लिखी गयी। बहुत अच्छे से आपने प्रस्तुत की। मुझे। बहुत खुशी हुई। मुझे इनवाइट करने के लिए। बहुत बहुत धन्यवाद। ऐसे ही लिखते रहिये और हमें सुनाते रहिये। जय माता दी।
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