किताब के उस पन्ने को पढने की। फिर से, उनकी किताब के उन पन्ने को पलटते हुए, देख, उन्हें आश्चर्य चकित होते हुए, अंतर मन से, अपने आप को खोजते हुए, दरपन में, अपने आप को रोता देखते हुए, अंतरात्मा से सोचते हुए, अफसोस करते हुए, यही उन लोगों को कहते हुए, जिन्होंने पन्ने को पढ़ने से रोका था। किताब के उन पन्नों में मेरी जिंदगी थी। जिसका रंग रूप, एकदम बदल गया। वो पन। ना ही? तो मेरे जीवन की किताब का खुश नसीब बनना था। कैसी? मेरी प्रस्तुति, लगी, आप, सुनने के बाद, जरूर मुझे बताइएगा?

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