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Kunal Jain
@sonofindia · 5:00

Hindi poetry on Hiking ऊँचाई पे चढ़ना और उसके बारे में सोचना अपने आप में एक पहाड़ चड़ने के समान तो हे ही लेकिन दरया किनारे हो तो सफ़र बड़ा मज़ेदार लगता है। उसी पे कुछ ख़याल पेश कर रह हूँ

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नमस्ते दोस्तों आप लोगो ने सभी ने 1 भी बहुत अच्छी सुन्दर मूवी हिंदुस्तान में आई है ऊँचाई वो देखी होगी मैंने अभी देखी जी टीवी पर मेरा मन किया की इस ऊंचाई के बारे में कुछ लिखूं और मुझे अपनी 1 पुरानी कविता में लास्ट इसी टाइम पर हमारे यहाँ पर अमेरिका में 11 माउंटेन है उसका नाम है वेस्ट ग्लेशियर पार्क वेस्ट ग्लेशियर माउंटेन ये मोंटाना में है बहुत ही सुन्दर माउंटेन है ये जो पिक्चर मैंने डाली है वहीं की है तो मेरे साथ ऐसा कुछ हुआ तो दोस्तों की 5 घंटे की 1 हाइक थी जो जो शुरू शुरू में तो मुझे लगा की बहुत ही आसान है मैं रोज वर्कआउट करता हूँ कसरत करता हूँ मेरे लिए कोई बहुत बड़ी बात नहीं होगी 23 घंटे जाना और 23 घंटे आना 5 घंटे अगर हाइक करके चले भी जायेंगे तो क्या फर्क पड़ता है करीबन 6000 फीट की वो हाइट थी उस हाइक की जो पीछे आप पहाड़ देख रहे हैं वो पूरा पहाड़ चढ़ कर आया बाद ये जो दरिया जो मेरे पीछे देख रहे हैं आप वो दरिया वहाँ पर थी करीबन 3 माइल लम्बा ये 13 माइल लंबा जो था पूरा 1 यह था और उसपर लिखा हुआ था मैकडॉनल्ड लॉज वहाँ से मैंने अपनी यह हाइट शुरू करी 3 माइल तक जाना था छड़ना था 6000 फीट और उसके बाद आना था शाम का वक्त था मुझे लगा ज्यादा टाइम नहीं लगेगा जैसे जैसे मैं चलता गया एक्साइटमेंट और ज्यादा बढ़ता गया और एक्साइटमेंट इतना था कि उसको उस पूरी हाइक को और बाय द वे सबसे छोटी हाइट थी ऐक्चवली यहाँ पर जितने हाइक हैं उसमे सबसे छोटी हाइक थी तो मुझे लग रहा था कि पता नहीं कितना आगे जा पाऊँगा कि नहीं जा पाऊंगा उस पर मैंने 1 कविता लिखी थी और क्यूंकि दरिया मेरे लिए बहुत ही मेरा दोस्त है दरिया मेरा दोस्त है आपने मेरी 1 पुरानी कविता सुनी होगी उसी के आसपास मैंने 1 और कविता दरिया पर लिखी थी वही यहाँ सुना रहा हूँ मुझे पता नहीं कि नेक् 3 मिनट में कविता पूरी हो पाएगी की नहीं अगर नहीं होगी तो मैं इसको आधी भी सुनाऊंगा और आधी के लिए मैं कल दूसरा सवाल 15 मिनट का कर सकता हूँ तो कविता मैंने इस तरह से लिखी थी जब मैं आधी ऊँचाई पर पहुँच गया तब मुझे थोड़ा थोड़ा अहसास हुआ की क्या इतना ऊपर आ तो गए हैं रात होने से पहले क्या वापस नीचे जा पाएंगे तो वो 1 मन में ख्याल था थोड़ा थोड़ा डर भी था तो उसी के आस पास ये कविता बुनी गई है इतनी ऊँचाई थी इतनी ऊँचाई थी कि गिरने से नहीं इतनी ऊँचाई थी कि गिरने से नहीं बल्कि उठ जाने के भय से मन का काँप रहा था इतनी ऊँचाई थी कि गिरने से नहीं बल्कि उठ जाने के भय से मन काँप रहा था अपनों से दूर न हो जाऊं कहीं बस इस ख्याल से मन भाग रहा था अपनों से दूर न हो जाऊँ कहीं बस इस ख्याल से मन भाग रहा था न ही कोई आस पास न किसी किसी को कुछ खबर न कोई आस पास न किसी को कुछ खबर मैं कौन हूँ मैं कहाँ से आया हूँ यह किसी को नहीं पता मैं कौन हूँ मैं कहाँ से आया हूँ ये किसी को नहीं पता और हो भी तो किसको इसकी फिकर और हो भी तो किसको इसकी फिकर सिर्फ मैं और यह दरिया ढूंढने तक का सफ़र सब ये बोल रहे थे की भाई ये जो दरिया है न ये दरिया यहाँ हेडन ट्रेजर है जहाँ तक जाओगे 3 माइल 6000 फीट ऊपर जाओगे वहाँ दरिया दिखेगा तो ये जो पूरा सफ़र था ये दरिया ढूंढने का सफर था तो सिर्फ मैं और ये दरिया ढूंढने तक का सफ़र इस दरिया को ढूंढने की जो आस थी उसकी हर आहट में मेरी मंजिल थी इस दरिया को ढूंढने की जो आस थी उसकी हर आहट में मेरी मंजिल थी वो जो अदृश्य थी पर कल्पना में शायद स्वर्ग से भी सुंदर थी वो जो दृश्य थी पर कल्पना में शायद स्वर्ग से भी सुन्दर थी थी यह सफ़र अद्वितीय था ये सफर अद्वितीय था अप्रतिम था 1 नया आविष्कार था ये सफर अद्वितीय था अप्रतिम था इसमें 1 नया आविष्कार था दरिया दिखी और उसमे बहती हुई मेरी परछाई भी दिखी दरिया दिखी और उसमे बहती हुई मेरी परछाई भी दिखी ये परछाई शायद वहाँ तक जाएगी यह परछाई शायद वहां तक जाएगी जहाँ मेरा पता कोई तो जानता होगा जहाँ मेरा पता कोई तो जानता होगा तो ये है ये इसका 1 और भाग है जो मैं ने उस में सुनाऊंगा लेकिन यह कैसी लगी मुझे पता।

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Kunal Jain
@sonofindia · 4:48

Meri kavita ka dusra bhag he yaha

तो किसी ने कहा इस कविता को पूरा 1 साथ सुना दीजिए तो यह पूरी कविता 1 साथ सुना देता हूँ चलिए इतनी ऊँचाई थी कि गिरने से नहीं इतनी ऊँचाई थी कि गिरने से नहीं बल्कि उठ जाने के भय से मन कांप रहा था इतनी ऊँचाई थी कि गिरने से नहीं बल्कि उठ जाने के वह से मन काँप रहा रहा था था अपनों से दूर न हो जाऊँ कहीं बस इस ख्याल से मन भाग रहा था अपनों से दूर न हो जाए कहीं बस इस ख्याल से मन भाग रहा था न कोई आसपास न किसी को कुछ खबर न कोई आसपास न किसी को कुछ खबर मैं कौन हूँ कहाँ से आया हूँ यह भी किसी को नहीं पता मैं कौन हूँ कहाँ से आया हूँ यह भी किसी को नहीं पता और हो भी तो किसको इसकी फिकर और हो भी तो किसको इसकी फिकर सिर्फ मैं और ये दरिया ढूंढने तक का सफ़र सिर्फ मैं और ये दरिया ढूंढने तक का सफ़र इस दरिया दरिया को ढूंढने की जो आस थी, इस दरिया को ढूंढने की जो आस थी उसकी हर आहट में मेरी मंजिल पास थी दरिया को ढूंढने की जो आस थी उसकी हर आहट से मेरी मंजिल पास थी, वो जो दृश्य थी पर कल्पना में शायद स्वर्ग से भी सुंदर थी वो जो अदृश्य थी पर कल्पना में शायद स्वर्ग से भी सुंदर थी यह सफर अद्वितिय था यह सफर द्वितीय था, अप्रतिम था इसमें 1 नया आविष्कार था ये सफर अद्वितीय था, अप्रतिम था इसमें 1 नया आविष्कार था दरिया दिखी दरिया दिखी और उसमे बहती हुई मेरी परछाईं भी दिखी दरिया दिखी और उसमे बहती हुई मेरी परछाईं भी दिखी यह परछाई शायद वहाँ तक जाएगी जहाँ मेरा पता कोई तो जानता होगा ये परछाईं वहाँ तक जाएगी यह परचाई शायद वहाँ तक जाएगी जहाँ मेरा पता कोई कोई तो जानता होगा मैं इतना थक गया था उस समय कि मुझे पता नहीं था कि मैं वापिस जा पाऊंगा कि नहीं जा पाऊंगा तो ये शब्द ये लाइनें उस चीज के लिए लिखी थी मैं इतना भय में था मैं चला तो गया 33 माइल वापिस भी आना था तो मैंने लिखा ये परछाई शायद वहाँ तक जाएगी जहाँ मेरा पता कोई जानता जहाँ मेरा पता कोई तो जानता होगा वो पूछेगी मैं कहाँ हूँ?
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