मेरे कलम की लकीर फ*ीर संजीराम खो गया बस पर कला का वो जी चुराता है वो है 1 दूसरे को ही जिनकी मैं ऊपर वाला भूल गया बस भूल गया तू चिन्दी भूल गया तू भूल आज हूँ मुझ से खड़े जा तू कल ले जा तू पैदल क्या होगा तेरे मन ता नहीं है तू छलांगे बेटा मारे देश रहे तेरे मेरे सर्दी है मेरी तो मेरी लेकिन मिलने की बर्फी है असल में जब जा जिले ब*ानेवाले है सा ही है उसी पंची देकर वहाँ वह तो।