Isliye kajal nahi lagati
हेलो? फ्रेंड्स? आज मेरी कविता का शीर्षक है। इसलिए काजल नहीं लगाती। रो देती हूँ? अक्सर। रो देती हूँ? अक्सर। इसलिए काजल नहीं लगाते। अपने गम को खुद से भी छुपाकर। अब खुद को पागल नहीं बनाती हैं? मुश्किल है? सफर। हर राह में काटे हैं। पर ये सुखदुख तो हमने हमेशा साथ मिलकर बांटे हैं। ख्वाहिश? बस यही है कि 1 दिन सब सही होगा? सब आसान होगा। हमारे सिर। पर। हमारे सपनों का आसमा होगा? धन्यवाद।