@sarwan_shan
Sarwan Kumar
@sarwan_shan · 3:02

बांसुरी चली आओ ….होठ का निमंत्रण हैं

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रात की उदासी को? याद संग? खेला है। कुछ गलत न कर। बैठे। मन। बहुत अकेला है। औषधी चली आओ। औशधी चली आओ चोट का निमंत्रण है। बाँसुरी चली आओ होठ का निमंत्रण है। बाँसुरी चली आओ होठ का निमंत्रण है। तुम। अलग हुई। मुझसे, सांस की खताओं से, भूख की दलीलों से, वक्त की सजाओं से, दूरियों को मालूम है। दर्द? कैसे सहना है? आख लाख चाहे पर। होठ से? न? कहना है? कंचनी कसौटी को?
@kalakalyani1
kala vyas
@kalakalyani1 · 1:01
वाह? सो। स्वीट? बहुत मधुर आवाज है। आपकी। मुझे 1 सॉंग याद आ रहा है। शायद आपने भी सुना हो। मुझे बहुत अच्छा लगता है। जैसे कि आपकी यह कविता अच्छी लगी वैसे ही मुझे। वो सांग बहुत ही पसंद है। जो कि तेनहिझिनमा वो गीत बना। गा, तेरे प्यार का सुर, तेरे प्यार को सूरत संगीत बनाएंगे। जो भी दिन जनम बोगी बनायेंगे।
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@sarwan_shan
Sarwan Kumar
@sarwan_shan · 0:27

@kalakalyani1

बहुत बहुत धन्यवाद। आपका। जो आपको मेरा ये कविता अच्छी लगी। जिस गाने की आप बात कर रहे हैं सच में। वो गाना बहुत अच्छा है। और आपने बहुत ही मधुर। आवाज। में इसको गाया है। बहुत अच्छा लगा। मुझे भी इस गाने में। उस कविता में। सच। में।
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