नमस्कार दोस्तों मैं सरिता सिंह आज फिर आपके सामने अपनी 1 नयी कविता लेकर आई हूं जिसका शीर्षक है रिश्तों की कहानी ना हक जु कोई रूठे मनाएं कहाँ तक ना हक चुकुई रूठे मनाएं कहां तक उलझी जो रिश्ते सुलझाएं कहाँ तक तक दिल तोड़ने वाले ने 1 बार न सोचा दिल तोड़ने वाले ने 1 बार न सोचा हम ही अपने अश्क बहाएं कहां तक न हकजकोईरूठे मनाएं कहां तक उलझे जो रिश्ते सुलझाएं कहाँ तक सजा सुनाई उसने मंजूर की मैंने सजा सुनायी आई उसने मंजूर कि मैंने सजदे में अपने सर को झुकाए कहां तक ना हक जोकोई रूठे मनाएं कहां तक उलझी जो रिश्ते सुलझाएं कहां तक दिल से जो किया हर फैसला गलत था दिल से जो किया हर फैसला गलत था ना काम या अपनी हम छुपाए आए कहाँ तक नाहक कोई रूठे मनाएं कहाँ तक उलझे जो रिश्ते सुलझाएं कहाँ तक तूफानों को घर मे राही रास आ गया तूफानों को घर मे राही रास आ गया आंधी में हम चराग जलाएं कहाँ तक ना हक कोई रूठे मनाएं कहाँ तक उलझे जो रिश्ते सुलझाएं कहाँ तक धन्यवाद।
मुझे सबसे पसंद आप कि वो लाइन तली की आंधियों को आपका गरीब पसंद है और उन आंधियों में आप चिराग जैसे कहां तक जलाएंगे ये तो इतनी खूबसूरती से आपने कहा कि जैसे मानो कि वो लोग लोग जिनकी लाइफ से कभी प्रोब्लम जाती ही नहीं है वो कैसे उम्मीद की किरण जलाए कैसे जलाएं वो सवाल खुबसूरत है और आपकी पार्टी लिखते रहिये अब बहुत अच्छा लिखती है और बहुत अच्छा रिसाइट भी करती है।
Sarita Singh
@Sarita1984 · 0:20
थैंक यू वेरी मच मैं आपकी हो हौसला आफजाई मेरे लिए बहुत मायने रखती है और सबसे अच्छी बात है कि आप पूरे ध्यान से सुनती हैं और लाइनों को समझ के आपने जो कुछ भी कहा मेरी पोल्ट्री के बारे में उसने सचमुच मेरा मनोबल बहुत बढ़ा दिया है थैंक यू मैं।