meenu Malik
@sapma · 5:00
Enlighted ourself
न? कोए? संसारिक। आशाएं? कामनाएं? इच्छाएं करते करते? उनकी पूर्ति करते करते? भागते? भागते। इंसान। थक जाता है। मृत्यु को भी प्राप्त हो जाता है। पर ये इच्छाएं कभी नहीं मरती? कभी स्मार्ट नहीं होती। और जब तक ये संसारिक कामनाएं हमारे अंदर है। न? हम हरगिज सुखी नहीं हो सकते। जिसका? जिसका हृदय इन संसारिक कामनाओं से खाली हो गया है। और उसे प्रभु के नाम, का की सच्ची लगन लग गई है। उसके सारे? दुख दूर हो गए हैं। वही खुशियों से भरपूर हो जाता है। क्योंकि परमात्मा के नाम से वंचित? रह, कर? सारा? संसार हमेशा दुखी और अशांत ही रहा है? रहेगा? क्योंकि भगवान के नाम के अतिरिक्त हम जितने भी धर्म करते हैं? या कर्म करते हैं। हम अपने विकारों को बढ़ाते हैं। कबीर? साहब जी ने भी कहा है? धिक? खाना? धिक? पहनना? धिक? सारा। व्यवहार। सत्य। नाम जाने बिना जीवन है? बेकार? कि? भक्ति के बिना? संसार के? जितने भी सुख हैं? वो इस प्रकार है? जैसे? नमक के बिना। व्यंजन। तो हमें अपने इस अंधकार में जीवन को प्रकाश की ओर लेकर जाना है। वो प्रकाश क्या है? वो? प्रकाश? गुरु का प्रकाश है? वो? प्रकाश? गुरु की कृपा है? गुरु का ज्ञान है? जो हमें सुख, शांति? और आनंद की अनुभूति देता है। सृष्टि की जितनी भी रचना है? न? यह द्वंद में है। अगर। आज। सत्य है? तो असत्य भी है? सुख है? तो दुःख भी है। जीवन है? तो मृत्यु भी है। इसी प्रकार संसार में ज्ञान है? और ज्ञान भी है? है? प्रकाश है? तो अंधकार भी है। लेकिन जैसे सूर्य सूर्योदय होता है और सारा प्रकाश फैलते ही रात्रि का अंधकार नष्ट हो जाता है? उसी प्रकार हमारे हृदय में अगर ज्ञान का प्रकाश होगा? तो हमारा अंधकार नष्ट हो जाएगा। ज्ञान का प्रकाश? प्रकाश है? है? क्या? ज्ञान का? प्रकाश? जहाँ पर है? वहाँ सुख? आनंद? और खुशी? मिलती है। और अंधकार क्या है? अंधकार? अज्ञान? है? ज्ञान। जहाँ होगा? वहां दुख? कलेश? और चिंता होगी? तो? अज्ञान? रुपए? अंधकार? को से छूटने के लिए? उसको दूर भगाने के लिए। हमें अपने संतों की शरण में जाना होगा? अपने गुरु की शरण में जाना होगा? ज्ञान लेना होगा? और उसकी कृपा के बिना। मनुष्य की। आंतरिक? दृष्टि में। अज्ञान का अंधेरा छाया रहता है। तो गुरु की कृपा होना बहुत जरूरी है। पुर? सतगुरु? ही हमारे ज्ञान का स्त्रोत है। गुरु अंग देव जी ने वाणी में भी कहा है जे सुचंद उग वही सूरज चढ़ी हजार एते चानण होदिया? गुरु। बिन? घोर? अंधार? अर्थात? कहने का भाव है कि सैकड़ों चंद्रमा और सैकड़ों सूर्य। 1 साथ उदय भी हो जाए? न? तो भी। इतना प्रकाश। इतना प्रकाश होने पर भी। वो सतगुरु के बक्से हुए ज्ञान के बिना। मनुष्य। आंतरिक। जगत में घोर? अंधकार? छाया रहता है कि सतगुरु का ज्ञान बहुत जरूरी है। हम जितना मर्जी आगे बढ़ जाएं। हम जितना मर्जी दुनिया में किसी ओहदे पर चले जाए? कितनी संसारिक? लग्जरीज? कंफरटेबल? सामान? इकट्ठे?