@Rohit_raj_0001
ROHIT RAJ
@Rohit_raj_0001 · 1:28

'इंसान बिक रहा है '

नमस्कार? मैं, रोहित, राज। आप सभी के। समक्ष। 1 बार फिर प्रस्तुत हूँ अपनी नई करता लेकर। जिसका शिर्षक है इंसान। दिख रहा है। तो चलिए शुरू करते हैं? जिधर देखो? जहाँ देखो हर और तबाही का निशान दिख रहा है। धन्यवाद। धरती। बंजर। पर। यह आसमान। काला पड़ा है? अपने स्वार्थ के। हाथों। इंसान बिखरा है। विकास की। बाहर। आपदाओं का। तूफान। उमड़ रहा है। जीवजंतु का। विलुप्त हो रहे। प्रकृति का।

#poetry #poetsofswell

@thehilarytales
Saumya Joshi
@thehilarytales · 0:48
ह**ो रोहित जी नमस्कार मुझे आपकी कविता बहुत पसंद आई। आपकी कविता में। आपने बहुत अच्छे से बहुत सारे आस्पेक्ट हाईलाइट करे हैं। सबसे अच्छा मुझे लगा कि आपने 1 लाइन बोली। इस कविता में कि अपने स्वार्थ के लिए इंसान बिक रहा है? तो तो यह बहुत सत्य लाइन है और इंसान अपने स्वार्थ के लिए बहुत सारी सीमाएं लांग कर बिक जाता है। तो आपने अपनी कविता में बहुत सारे ऐसे फैक्ट्स रखे हैं जो कि सच है और जिसमें हमें ध्यान भी देना चाहिए। इंसान को अचेत नहीं पड़े रहना चाहिए।
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