ROHIT RAJ
@Rohit_raj_0001 · 2:00
"भ्रष्टाचार : मैं बिकुंगा नहीं "
वो इस प्रकार है। मैं बिकूँगा नहीं रुक जा। जरा तू। देख ले। यह तमाशा। मेरी बदनामी का होना। मुझको मशहूर नहीं। मैं। आदि। गुमनामी का। किन्तु चरित्र पर। कोई दाग। किसी मोड़ पर न लगने। दूंगा। मैं। मर जाऊंगा। भले? कभी। अब ना मान, न कभी। बिकने। दूंगा। है। साहस। मुझमें असीम सत्य को। सत्य। कहने का मैं हूदृटसंकल्पित। हर मोड पर। बेमानी के खिलाफ। लड़ने। का?
Muskan Bothra
@Heart_sayer · 1:37
वाह? सर? आपने। बहुत जोरदार कविता लिखी है। और आपकी जो टाइटल है? वही आप क्या? कहना? चाह रहे हो? भ्रष्टाचार में? बेकिंग? नहीं? सही है? आज की इस दुनिया में। भ्रष्टाचार तो बहुत ज्यादा बढ़ गया है। चाहे वो हो? या आंखों के सामने। सफ़ेद। कैसे भी हो? भ्रष्टाचार तो हो रहा है। लोग अपनी जीवनी इस भ्रष्टाचार में ही चला रहे हैं। आपने अपनी कविता में। वो सारे मुद्दे पाये हैं? जैसे कि मैं सही का हमेशा साथ? दूंगा। हमेशा जो हित में हो वही करूंगा।
और वो जल्दी से बढ़ता हुआ तो दिखता है? चमकता हुआ दिखता है। लेकिन उसकी चमक ज्यादा देर नहीं। रहती। फीकी हो जाती है। जो तेजी से चढ़ता है। वो तेजी से। गिरने का भी तो डर रहता है। तो बहुत अच्छी कविता लिखी है। आपने। बहुत सही बात लिखी है। ईमानदारी का रास्ता मुश्किल है। थोड़ा देर से सफलता देता है। पर जब देता है? तो वाकई। वो कहते हैं न कि आप खामोश ही रहो। जब सफलता मिलेगी तो शोर मचेगा। तो। वो। जो शोर होता है।