@Rohit_raj_0001
ROHIT RAJ
@Rohit_raj_0001 · 2:17

एक माँ की पुकार

article image placeholderUploaded by @Rohit_raj_0001
तो वो क्या? कहती हैं? आखिरी बार? अपने बेटे से विदा होते समय। उसी पर। मैंने यह कविता लिखी है? तो वो शुरू करते हैं मारा? मुझको? तू कसाई है? कैसा? निसंतान? ठीक? रहती? यह औलाद? है? कैसा? मेरा? सहारा? बनता? तू? बस? यही आस थी? भगवान से? मिला दिया? बस? इसकी प्यास थी? मां? हूं? तुझे? बद? दुआ भी नहीं दे सकती? मर? चुकी हूं तेरे लिए।

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@voicequeen
Jagreeti sharma
@voicequeen · 1:17
और मां ने अपने पिता को भी व्यक्त किया है कि तू भी कैसा निकला? बेटा? कि मुझे तो 1 उम्मीद सब तुमसे ही थी। और तुमने ही मेरा साथ नहीं दिया। मुझे जैसी जिंदगी चाहिए थी वैसी जिंदगी नहीं ली। फिर भी देखिये। मां जब अंतिम बार संवाद करती है। फिर भी अपनी बेटी की चिंता करते हुए कहती है कि तुम अपने आप को सुधार लेना और अपनी संपत्ति संभाल लेना। अपनी माँ की ममता का चेतन बहुत अच्छे से किया है। इसी तरह से कविताएं लिखते रहिएगा और हम सबको सुनाते रहिएगा। धन्यवाद।
@Vipin0124
Vipin Kamble
@Vipin0124 · 1:49

@Rohit_raj_0001

इस उद्देश्य से उन्होंने कभी तुम्हें बाहर नहीं भेजा था कि तुम आओ। और 1 भंगूर? मात्र संपत्ति? जो नश्वर है, आज है? कल? नहीं? रहेगी? उस? मेटरलिस्टिक आस्पेक्ट के लिए तुमने अपनी मां को मार डाला। इसी कारण वश कभी कभी लोग दुखी हो जाते हैं। और इस प्रकार की घटनाओं को सुनकर देखकर सोचकर। उनके मन में ऐसा महसूस होता है कि ऐसी नाकारा औलाद होने से तो बेऔलाद होना ही अच्छा है। अपनी परवरिश। पर। सवाल उठते हैं कि हमने यह सब सोचकर अपनी संतान को पाल पोस कर।
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