यहाँ बुलवा लेता हूँ? सम्मान खुद का करवा लेता हूँ? गरीबी का ढोंग रचता हूँ? झूठे, काल्पनिक, किससे, घटता हूँ? शिक्षा की अलग? जन? शिक्षा की अलग। जगाने की। आड़ में। मैं नितनएसर्यंत्र रचता हूँ? शिक्षा का ठेकेदार हूँ। मैं। बस? डींगे, हाकता? रखता हूँ? नाम। मिले। कुछ सूरत? बने? नए शिकार, फांसता रहता हूँ। हाँ? शिक्षा का ठेकेदार हूँ? इस महादान का करता? व्यापार हूँ?
Priya kashyap
@Priya_swell_ · 0:13
आपकी। कविता बहुत ही मीनिंग फुल थी। इसके 11 लाइन से सीरियसली। हमें यह पता चल रहा है कि इस एजुकेशन सिस्टम में हो क्या रहा है? आई? रैली? एप्रीसिएट? योर वर्क्स की पोस्टिंग?
बच्चे ही हमारे आने वाली पीढ़ी और आने वाला समाज है? जो आगे बढ़कर? कुछ अच्छा करे। शिक्षा ही अगर सही नहीं होगी? तो? समाज अच्छा कैसे बन सकता है? कैसे? निर्माण होगा? समाज का? जिसकी? हम कल्पना तो करते हैं? पर हम उसके लिए कोई प्रयास नहीं करते? क्योंकि स्कूल में? शिक्षा और शिक्षक? और पेरेंट्स? 2 ही तो ऐसे हैं? जो बच्चे को 1 सही मार्गदर्शन दे सकते हैं? सही समाज का निर्माण करने में सहायता कर सकते हैं।