सवेरे जब उसके गली से गुजरा तो कुछ अजीब सी कशमकश थी जैसे गलियां कुछ पर रात की जो हाथ में पकड़े जाम से सवाल था हसरत तो रोज चेहरे का नाम मेरे जुबा उसके झुमके मुझे अलग ही ख्वाब दिए जाते है और फिर क्या अपने ही बेनाम सवालों के खयाली जवाब देने लग जाता हूँ मेरे शब्दों के जाल मुझे फांस लेते हैं जब भी जिक्र उस झुमके वाली की करने लगता हूँ और आज कुछ ऐसा लगा कि कुछ तो है कुछ तो है जो सही और गलत के दायरे से जरा दूर है तुम्हारी मोहब्बत है या मेरा इंतजार मालूम नहीं कुछ है जो सच और झूठ के दर्मिया नहीं तुम्हारे वादे या मेरी बातें मुझे खबर नहीं टूटे बिखरे से ख्वाब है कुछ और कुछ आँखों के किनारे बैठी नींद कुछ है कुछ है जो अधूरा सा लगता है तुम्हारे बगैर ये जिंदगी जिंदगी या फिर मैं खुद मुझे मालूम नहीं करवटों में गुजरती है रातें करवटों में गुजरती है रात तो कभी सुबह होने के इंतजार में जागी आँखें कुछ तो है जो मुझे बेचैनी में उम्मीद देता है वो तुम्हारी भूली बिसरी यादे या फिर खुद के इश्क परियट मुझे कोई खबर नहीं कोई खबर नहीं पाँव में बिन घुंगरू के पायल बिन बिंदी के सूना सा चेहरा तेरा कुछ तो वजह है कुछ तो वजह है कि तू खुद से यूँ खफा सी है वो तुम्हारा बिन बिन कहीं चले जाना या फिर मेरा तुम्हें चाह कर भी ना रोक पाना मुझे मालूम नहीं कभी खाली कमरे में तुम्हारे होने का एहसास कभी तुम्हारे करीब रह कर भी तुम्हें तुम्हें ना छू पाने का मलाल कुछ तो है मेरी निगाहों में जो मुझे हकीकत से दूर रखती है वो तुम्हारी मुस्कराती तस्वीर या फिर आसमान में चमकता तुम्हारे नाम का सितारा मुझे कुछ मालूम नहीं मुझे कुछ मालूम नहीं कुछ मालूम नहीं कुछ मालूम नहीं।