इस पूरे दिन में बस तेरे नाम का इंतज़ार रहता है कैसे? कहूँ? कैसे? कहूँ कि तुझे इश्क बेशुमार रहता है? बेशुमार रहता है धीमे से। काफिला बन के तो पल भर में मेरे सामने आ जाती है। मेरे अंदर पनप रहे। तुझे देखने की आरजू अंगार बने। मेरी धड़कने बढ़ा जाती हैं। कुछ अलग। सा रिश्ता है मेरा तेरे से। मैं तेरे नाम की पुकार लगाता रहता हूँ और तू सुकू बन के मेरे दिन भर की बेताबी को मिटाने आ जाती है 1 बेनाम से रिश्ते में खुद को बांधे बैठे हैं वक्त के माने रोज बदलते रहते हैं और ये रिश्ता खुद को नाम दे रहता है कभी शिकायत भरी जुबान से 1 दूसरे को कोस लेते हैं तो कभी 1 दूसरे की मौजूदगी में खुद को आँसुओं में भिगो लेते हैं। खयाल न जमाने का होता है न फितूर जिंदगी के सफ़र का होता है तो बंद के नवाजिश मेरे सपनों में आ जाती है और तो शेष बेशुमार होने लगता है बेशुमार होने लग रात के अंधेरे में। अपनी आँखें। मूंदे जब अपने सपनों की दुनिया में हाजिर होता हूँ तो बन के 1 सितारा अंधेरे में आफत बन जाती है शिद्दत से बन के आफरीन। हर शहर अपने रौशनी से मेरे पलकों को सुकूं दे जाती है तो बन के सहारा मेरे ख्यालों को अपना बनाती जाती है वाके हो जमाने के दस्तूर से। फिर भी तेरे नाम का इंतेजार बेवक्त रहता है कैसे? कहूँ? कैसे? कहूँ कि तुझसे इश्क बेशुमार रहता है? बेशुमार रहता है। मेरी घड़ी के कांटे टिकी लगाये मुझे वक्त का अंदाजा देता है हर शाम ढलता सूरज मुझे मगरेब के बाद का इशारा देता है तू बन के गुलाबी परवाज मेरी रिवायत बन जाती है है तो अजनबी सी है तो तू अजनबी सी लेकिन हर पल मेरे ख्वाबों में आ जाती है। दुनिया हाल पूछती है? मैं तेरे शहर का पता बता देता हूँ? दुनिया ख्याल पूछती है? मैं तेरी आँखों की इबादत कर देता हूँ? दुनिया इश्क पूछती है? मैं तेरा। मैं तेरे नाम को आमीन कर देता हूँ। दुनिया सफर पूछती है मैं तेरे चलते कदम को अपना रास्ता बता देता हूँ। था मेरा तुझसे। मिलना मेरा स्तरा था तेरे आवाज से। मुनासेबोाफासले तेरे मेरे शहर के भले ही ज्यादा हो लेकिन मुझे तुझसे मिलाने में जरू था खुदा का खुद बेताब होना खुद बेताब होना। इस अनजान से शहर में मेरा दिल तेरे तस्वीर को मंजिल बनाये फिरता है क्या कहूँ? और अब क्या कहूँ? बस? तो शेष बेशुमार रहता है तो शेष बेशुमार रहता है तो गुलाबी होती जाती है और मसला होता जाता है और तो शेष बेशुमार होता जाता है बेशुमार होता जाता है बेशुमार होता जाता है।