जो मांगू प्रमाण तुम्हारे निश्छल प्रेम का तो नेत्रों से अपने मेरे नेत्र में ला देना जो भावनाओं का सागर उमड़ पड़े। तुम्हारे हृदय में। तो उन्हें शब्दों में पिरो कर मुझे सुना देना दूर दृष्टि की तो बात योजन में मानी जाती है। अथाह प्रेम जो है। हमारा यह दूरियों को पार कर जाती है हाथ में हाथ लिए। यह प्रेम का स्वरूप नहीं जो हो। मन की। जोर।

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