स्वेल के सभी साथियों को प्रवीन कुमारी का सादर नमन। साथियों मेरी अपनी लिखी हुई पुस्तक मेरी सोच में से प्रस्तुत है। अगली पंक्तियां। हे नाथ? कृपा करो? ऐसी? हे नाथ? कृपा करो? ऐसी? विराने की रेत पर भी? लिख? दूं? तेरा नाम? हे? राम? राम? राम? राम? राम? धन्यवाद? शुभकामनाएं? कल? फिर? मिलेंगे?
बहुत ही प्रभावी और बहुत ही कौशल रूप से आपने अपनी कविता को समझाया है। मैं आपकी कविता की बहुत प्रशंसा करती हूँ। आपकी कविता के माध्यम से ही हम अपनी लाइफ को, हम अपनी जिंदगी को बहुत ही अलग रूप से देख पाते हैं। और आपकी कविताओं में आप अपनी भावनाओं और अनुभवों को सामने रखते हुए, जो आपके शब्दों को अपनी भावनाओं से जोड़ने की, हमारे भावनाओं के साथ रिलेट करने की कला है, मैं उसकी बहुत ही प्रशंसा करना चाहूंगी।