टेलिविजन वाला घर। बेशक। कविता। ये उन दिनों की बात है? जब टेलिविजन हमारे देश में पैदा ही हुआ था। टेलिविजन वाला घर किसी गांव के चौपाल से कम न था। उसे सब जानते थे। टेलिविजन वाला घर कई घरों तक का रास्ता बताता था। टेलिविजन वाले घर के बच्चों से सबकी दोस्ती होती थी। दूर खड़े होकर हम उनके खाना खाने का इंतज़ार करते थे। अंदाजा लगते थे कि कब टेलिविजन के ऊपर का कपड़ा उठ गया होगा? और शटर हट गया होगा। और उस नीली रोशनी का इंतजार करते?

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@PopcornTamasha
chetan kannangar
@PopcornTamasha · 0:47
बड़ी सुन्दर कविता है। अनिल जी। 1 ही पॉइंट से रह गया है। इसमें। बताना था। हर उसकी वजह से हमारे बच्चे। और हमारे fasle। जो लोगों को जोड़ता था। आस पड़ोस वालों को जोड़ता था। पूरी सोसाइटी को जोड़ता था। आज। वो 14 जनों के छोटे से न्यूक्लियर फैमिली को भी जुदा कर देता है। बस। यही बताना था। थैंक यू सो। मच। अच्छा लगा। आपकी कविता सुन के।
@peekayanil
PK Anil Kumar
@peekayanil · 0:07

@PopcornTamasha

जी बिलकुल सही बोला आपने थैंक यू सो मच धन्यवाद
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