ह**ो प्रणाम नमस्कार पंचतत्व गुलिक सोच 1 आवाज 1 बार फिर से आपके साथ मेरी इस रचना का नाम है गुलाब तो पेश करती हूँ न खिलता गुलाब हूँ न महकता गुलाब हूँ उस तितली के बस इंतजार में आस लगाए बैठा गुलाब हूं कोई पढ़ ले कभी उस किताब का सूखा गुलाब हूं यादो का कहानियों का हर परत हर पंखड़ी में जिंदगी की सांसों का गुलाब हूँ कोई तोड़ ना ले मुझे उस डर में जीता गुलाब हूँ दुनिया की भीड़ में हर रंग मि ढलता तेरी मिट्टी की खुशबू से भरा अद खिलासा गुलाब हूँ न खिलता गुलाब हूँ न महकता गुलाब हूँ थैंक यू वेरी मुच।
Aishani Chatterjee
@Aishani · 0:26
हाई आपकी कविता बहुत खूबसूरत है और जिस तरह से आपने इसको प्रेजेंट किया वो भी वो अंदाज भी आपका बहुत अच्छा लगा हमें आई होप कि आप ऐसे और भी अपने पोयम्स, अपने राइट अप आप शेयर करते रहेंगे अपने स्पेल कास्ट से यह है भी टोटली लुकिंग फॉर टू दैट थैंक यू।
Pragunify
@PanchTatwaGirl5 · 0:09
थैंक यू वेरी मच शानीजी फॉर ेप्रीसिएटिंग द लाइंस और मेरी आवाज भी बहुत बहुत धन्यवाद आपका।