नमस्कार लिस्नर्स आज मैं आपको जो कविता सुना रही हूँ उसका शीर्षक गर्मियां याद आती हैं बहुत वो पहले की गर्मियां तन मन में उल्लास की उष्मा भरती थी वो गर्मियां नानी के घर की मिठास बांटती वो छुट्टी की गर्मियां रेल के सफर में परायों को अपना बनाती वो गर्मियां आज की तरह तब झुलसती नहीं थी काया हरे भरे पेड़ पौधे देते थे छाया खुली खिड़कियां झरोखों से आती मंद हवाओं की छुअन आम तरबूज खरबूजों लीची की मिठास आमरस बील ठंडाई लस्सी से बुझती थी प्यास याद आती है वो पहले वाली गर्मियां सुरमई रात में ठंडी सफेद चादरों पर खुले आसमान के तले पूरे परिवार का सोना रात के सन्नाटे को तोड़ती वो बोलती बतियाती हंसती खिलखिलाती 1 दूजे से जुडी छतों की गर्मियां कूलर एसी फ्रिज की ठंडक में आज कहीं गुम हो गई हैं वो गर्मियां अपनों को पराया बनाती ये आज की गर्मियां रिश्तों की उष्मा को ठंडक से जमा देती ये आज की गर्मियां हरियाली हुई खत्म प्यासे पंछी हैं व्याकुल मौन झुलसते पेड़ पौधे बाग बगीचे गए सुख कोई नहीं प्यास बुझाने वाला पसीने से तर बतर लोग प्यास बुझाते पैप्सी कोला कोक से अब बच्चे नहीं जाते नानी के घर अब बच्चे नहीं जाते नानी के घर पैकेज टूर कर घुमाते देशी विदेशी टूर नारी भी जो तपती थी जीवन भर रिश्तों भावनाओं की उष्मा सहेज घर परिवार संभालती थी चूल्हे अंगीठी की आंच में घूंघट की योट में पकाती थी भोजन आज आधुनिकता की दौर में वस्त्रों को करती जाती है कम चेहरे का मेकअप न जाए छूट रंग पड़ जाए न काला उसे नहीं भाता दिनरात काम में जुटे रहना सूरज तो अब भी तपेगा धरती भी होगी गर्म सिमटते रिश्तों में सहनशीलता के अभाव में सहन न होगी गर्मी की तपन आज आज हारी हैं सूरज से आज की गर्मियां थैंक यू