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काज़ल

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कहने को तो काजल है। यह मेरी आँखों का कभी सवारता है, कभी बह जाता है, कभी इंतजार में घंटों बादलों से सवाल पूछता है, तो कभी शर्म से फैल जाता है। मेरी काली आंखों में हज़ारों रंगों सा बसता है। हर कल्पना को यथार्थ करने की प्रेरणा देता है। घर में डगमगा जाऊं, कभी तो आत्मविश्वास से रूबरू कराता है। जब से सजाने लगी हूं, तुझे आईना भी मेरा साथी बना है। पलकों की चिलमन भी चमकने लगे हैं। काजल की लकीरों ने ऐसा जादू किया है।

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