भीड़ में भी 1 तनहाई सी रह जाती है ना कोई थाम ले मेरा हाथ ये कही जाती है न बहुत अच्छा लगता है दोस्तों से बतियाना चंद रिश्ते हैं जिनके साथ इधर धर की या पुरानी बातें दोहराना उन बातों को याद कर करके ठहके लगाना पर दर्द में हों तकलीफ में हो और जो हमारी तकलीफ में सो न सके ऐसे किसी अपने की क*ी बेचैन कर जाती है न सब कुछ होकर भी कुछ क*ी सी रह जाती है न भीड़ में भी तनहाई सी रह जाती हैं न किसी अपने खास निगाहें ढूंढती रह जाती हैं न जिनको हमारी खुशियों की परवाह जिनको हमारी पसंद का ख्याल ऐसे किसी साई की चाहत बेचैन कर जाती है न भीड़ में भी 1 तन्हाई सी रह जाती है न।