navin sharma
@Navin-sharma · 1:06
भुला नहीं हूँ तुम्हें के उलझा हुआ हूँ मैं
भूला नहीं हूँ तुम्हे को उलझा हुआ हूँ मैं खुद के जवाबों में, जिंदगी के सवालों से इस सर्द मौसम में मैंने कुछ लिखा है अपने इश्क पर अधूरे इश्क पर तो कुछ क्यूँ हैं वो इन मुख मुक*्मल रात के अंधेरों में, इन मुक*्मल रात के अंधेरों में, इन सर्द सबेरों में, ओस की बूंदों में तुम्हारी ही यादें इन मुक*्मल रात के अंधेरों में, इन सर्द सबेरों में, ओस की बूंदों में तुम्हारी ही यादें इन कोरे पन्नों में, मुरझाए फूलों में उसके दिल दिया हुआ गुलाब तो इन कोरे पन्नों में, मुरझाए फूलों में शब्दों का समंदर है भूला नहीं हूँ तुम्हें भूला नहीं हूं तुम्हें या उलझा हुआ हूं मैं भूला नहीं हूँ तुम्हे उलझा हुआ हूँ मैं खुद के जवाबों में खुद के जवाबों में, जिंदगी के सवालों से।
अधूरेश की जो दर्द होती है, जो जो सफरिंग्स होते हैं वो आपके इन लाइनों में बहुत खूबसूरती के साथ आपने बयान किया है बहुत बहुत खूबसूरत है ये कविता।