होता है? न? कई बार ऐसा कि हम बहुत कुछ कहना चाहते हैं। पर हमारे पास कोई ऐसा है? नहीं? जिससे हम कहें? हम सब कुछ अपने अन्दर दबा के बैठ जाते हैं? बहुत कुछ सोचने लग जाते है। किससे कहें? किससे नहीं था? कोई? जिससे हम कहा करते थे? अपनी बातें सुनाया करते थे। पर अब वो इंसान नहीं रहा? अब? अच्छा लगता है? खुद में ही बातें समेट के रख लेना। पर क्या ये हमारे 1 स्ट्रेस का कारण बन सकता है? बहुत ज्यादा? सोचना? किसी के विषय में? क्या?
@challasrigouri
Challa Sri Gouri
@challasrigouri · 0:35
आपने? सच में? सही? कहा? कभी कभी ऐसा हो जाता है कि हमें बहुत कुछ शेयर करना चाहते हैं पर हमारे पास लोग नहीं रहते हैं जिसके साथ हम सब कुछ शेयर करते हैं। और मैं ये बिलीव करती हूं कि कभी अपने आप को किसी से बहुत अटैच नहीं करना चाहिए। क्योंकि अटेचमेंट दुख की कारण बन सकती है। और कभी कभी जब लोग हमें इगनोर करने बैठे जाते हैं तब उनको भूलना और अब हम फिर से ट्रैक पे। आना सब कुछ बहुत मुश्किल हो जाता है। तो इसलिए किसी से भी अटैच नहीं होना चाहिए।
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