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Sudhir Sanwal
@MannKeManke · 4:53

खामोशी की गूँज

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खामोशी की गूंज पर वह कभी बाहर झांकता और फिर हंसते हुए कोई चुटीली सी बात लिख कर मुझे देता और मैं भी उसी तरह हर्ष की अनंत गहराइयों से भाव और शब्द खोज कर उसे उत्तर लिखकर देता अब सारा जो कनवर्सेशन था हमारा ये मोबाइल फोन के टेक्स्ट मेसेजिंग पर ही चल रहा था वो मैसेज टाइप करता था और मुझे पकड़ा देता था मैं उसको डिलीट करके वहाँ अपना आंसर टाइप करके उसे दे देता था बातों बातों में उसने बताया कि वह खिलाड़ी है और किसी खेल प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए चेन्नई जा रहा है उसने बताया कि उसके कुछ और साथी खिलाड़ी और ट्रेनर भी हैं जो दूसरे कोच में बैठे है 1 दूसरे की आवश्यक औपचारिक जानकारियों के आदान प्रदान के बाद कुछ अधिक नहीं था कहने को लेकिन वो बातूनी लड़का कहाँ मानने वाला था 1 बार तो वह मुझे देख कर कुछ ऐसे मुस्कुराया जैसे कुछ याद आ गया हो मैंने भी उसकी ओर देख कर प्रश्नवाचक भाव से अपनी भौहें उचकाई उसने फिर मोबाइल निकाला और अबकी बार कुछ शरमाते हुए और मुस्कराते हुए लिख कर मुझे बताया की उसकी 1 बहुत सुन्दर लड़की से दोस्ती है लेकिन उसे खेल बिल्कुल पसंद नहीं है मैं भी हंसा और मैंने लिखा की कोई बात नहीं यदि उसे खेल पसंद नहीं है तुम जैसे सुंदर खिलाड़ी में तो उसकी दिलचस्पी है और यह 1 अच्छी बात है वह बहुत देर तक मेरे उस उत्तर को पढ़कर मुस्कराता रहा जैसे अपने उस दोस्त के सपनो में खो गया हो उसने फिर लिखा कि वो लड़की मेरी किसी भी प्रतियोगिता को देखने नहीं आती है जिसका मुझे अफसोस रहता है अबकी बार मैंने लिखा कि तुम्हारी दोस्त सच में ही बुद्धिमान हैं जो सीधे आम खाने से मतलब रखना चाहती है पेड़ गिनने में उसकी कोई रुचि नहीं है उसने साधन के बिना ही साध प्राप्त कर लिया है और फिर तुम जैसे ऊर्जावान और सकारात्मक व्यक्ति के साथ वह सदा प्रसन्न ही रहेगी इस बार वो पूरे मन से हंसा तभी उसके साथी खिलाड़ी उसे अपने कोच में बुलाने के लिए मोबाइल पर संदेश भेजते हैं और वह रेलगाड़ी के किसी स्टेशन पर रुकने की प्रतीक्षा करने लगता है मैं उससे इस तरह जुड़ गया था की मुझे रेल गाड़ी के शोर का भी आभास न रहा अब रेल गाड़ी की खटर पटर चूं चूं करती चिडियों के जैसे शोर में बदलने लगी थी शायद कोई स्टेशन आ रहा था यूँ तो मोबाइल पर लिख कर भी बात करने में मुझे मजा आ रहा था फिर भी मैंने सोचा की ऐसे दिलचस्प व्यक्ति के साथ तो अगल बगल बैठ कर ही बातें की जाए ट्रेन स्टेशन पर रुक चुकी थी शोर अब बदल चुका था लेकिन 1 दुसरे से बात करने योग्य था मैं अपनी बर्थ से नीचे उतरा और उससे कुछ बोला वो चुप रहा मैंने फिर से अपनी बात दोहराई मेरे विस्मय का कोई ठिकाना न रहा जब उसने मुझे इशारे से बताया कि वह तो गूंगा भरा है जी हाँ मैं सन्न था कि इतना सजीव भावुक और बातूनी व नौजवान भावनाओं से तो लबरेज किन्तु वाणी से लाचार था मैं अब उसे 1 टक ही देखता जा रहा था मैं सोच रहा था की बिना कानों के भी जब वह व्यक्ति हर आवाज को बस अपने दिल से ही महसूस कर रहा है और संगीत और शोर में अंतर न कर पाते हुए भी केवल अपने भीतर सकारात्मकता से इसे झूम रहा है तो मैं इन संकरी दीवारों से क्यों बाहर नहीं आ सकता क्यों मैं स्वयं के नकारात्मक कोलाहल के बीच कोई मधुर ध्वनी सुन ही नहीं पा रहा हूँ क्यों मैंने अपने भीतर इतनी आग जला रखी है कि उसके काले धुएं में मुझे कुछ भी चमकदार और सुंदर दिखाई नहीं देता है कितनी खुशी और ऊर्जा थी उसकी बातों में मुझ जैसे ठीकठाक बोलने वाले शायद कभी इतना मीठा न बोल पाए जितना वो केवल अपने दिल से निकले शब्दों से समझा गया उसके जाने के बाद मुझे बार बार यही लगता रहा काश मैं उससे कुछ देर और यूँ ही बात कर पाता मैं उसको और कुछ समझ पाता मैं उसको सच में अपना दोस्त बना पाता तो दोस्तों ये थी मेरी कहानी खामोशी की गूंज आशा करता हूँ आपको कहानी पसंद आएगी धन्यवाद

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