तो चलू ज**** को। आदत पड़ी हुई है? है? ज**** को। आदत पड़ी हुई? है? ज****ों से। रिश्ते निभाने की। ज**** को। आदत पड़ी हुई? है? ज****ों से। रिश्ते निभाने की? रूह के आगे से। ज**** के ये पर्दे गिरा दूं? तो चलूं? रूह के आगे से। ज**** के पर्दे गिरा दूं। तो चलूं थक गया हूं?
ह**ो निखिल जी मैंने आपकी कविता सुनी। बहुत सुन्दर कविता। जो शब्द जो बयां कर रहे हैं वो बहुत सुंदर है। मुझे बहुत अच्छा लगा। आपकी यह कविता सुनकर। ऐसी आप कविताएं हमारे साथ शेयर करते रहे।