Meenu Babbar
@kavyakaar · 1:56
कविता -- अखबार की दास्ता
शाम को। मिलता। इसे। आराम। आयक। बाड़ी वाले की। आवाज? बोला। दे। 2। रद्दी। अखबार। अखबार का हुआ। खत्म। आराम गई। रद्दी वाले के पास। जोर से फेंकी गई। अखबार। मर गई। मैं। बोली? अखबार? किसी ने पैरों तले? दबोचा? किसी ने समोसा। लपेटा। पहले मन को भाती है। फिर पैरों। तले। दब। जाती है? कैसा? जीवन? उसने पाया? सोचे? ये? नन्ही? अखबार? बोली। मेरे प्यारे। भगवान?
Prabha Iyer
@PSPV · 1:55
और मेरा पूरा डिजाइन। जैसे। मुझे। जिस तरह से मुझे लपेट कर रखना है। वो भूल जाते हैं? बच्चे? तो फिर? कुछ क्रॉसवर्ड? या फिर वर्ड पजल? या कुछ ऐसे लिखने शुरू करते हैं? तो मैं पार्ट पार्ट हो जाती हूं? पूरा 1। जैसे नहीं रह पाती हूं? सवेरे से। जब मैं सवेरे नई नहीं आती हूँ। कितनी सुंदर लगती हूँ? पूरा एकदम फ्रेश। और जब मैं शाम को जब सब लोग मेरा इस्तेमाल कर चुके हैं, पढ़ चुके हैं? तो फिर मेरे को जिस तरह से रखते हैं।