तो मैं इसपर कुछ लाइनें सुनाना चाहूंगी कि सपनों की चाहत में घर त्याग? हर किसी के बस की बात नहीं। खुली नजर के देखे, सपनों को पूरा करने में। रात। दिन को 1 करना? हर किसी के बस की बात नहीं। अपने सपनों को ही अपनी पहचान बनाना। दोस्तों? इतना भी तो आसान नहीं। इस ख्वाहिश को पूरा करने की चाहत में। न जाने कितनी ही ठोकर खाएं, इनको सहकर भी आगे बढ़ना। हर किसी के बस की बात नहीं। सो। यही थी मेरी कुछ लाइनें।