@jayasharma
Jaya Sharma
@jayasharma · 2:11
article image placeholderUploaded by @jayasharma
क्यों अचानक आज उनके सुर बदलने लगे? क्यों अचानक आज उनके सुर बदलने लगे? चिंता न करो, हम? है न चिंता न करो, हम हैं न कहने वाले राह हमें देखकर सामने अपनी राहें? क्यों बदलने? लगे? बेफिक्र रहा करते थे? जिनकी सरपरस्ती में हम बेफिक्र रहा करते थे? जिनकी सरपरस्ती में हम? क्यों? आज फिर वो सर से हाथ हटा? लिए गए? क्यों? आज फिर वो सर से हाथ हटा? लिए? ऐ खुदा दर बदर के खा ठोकरे?

#poetsowell #collegevoiceindia #swellcast

@voicequeen
Jagreeti sharma
@voicequeen · 1:32

#वक्त, #mywordmypower

नमस्ते? जय मैं। गो डाक्टरन। आपने। मुझे इन्वाइट किया है उसके लिए। आपका धन्यवाद। आपकी। कविता। वक्त के ऊपर बहुत अच्छी है। जिंदगी की वास्विकता से रूबरू कराती हुई। जब बुरा वक्त आता है तो ही पता चलता है कि हमारा असली अपना कौन है? और कौन? मीठी, मीठी बात करने वाला। हमारे सामने हमें अपना करने वाला। और बुरे वक्त में पहचानने से भी इनकार करने वाला। वक्त ही हमारा सबसे अच्छा मित्र होता है। आपकी। कविता बहुत अच्छी है। खोदते हुए, सास करके, मेहनत करके आगे बढ़ने की प्रेरणा भी देती है।
@urmi
Urmila Verma
@urmi · 1:39
और ने आगे कविता में बयान किया कि अपनी हिम्मत पर ही हमें अपनी हिम्मत पर विश्वास रखना चाहिए। हम अपने मेहनत के बल पर ही आगे बढ़ सकते हैं। चाहे अपने मार्ग में। लोहा कितनी बाधाएं खड़ी करें? उसे हमें डरना नहीं चाहिए। और कितने ही हमें धोखे थे। लेकिन हम सत्य के मार्ग पर हैं। तो हमें सफलता मिलेगी ही। और कोई साथ दे? या न दे? ईश्वर, जरूर। हमारे साथ हमेशा खड़ा होता है। हमेशा हमारी मदद करने के लिए तैयार होता है। तो ये भी आपने अच्छा भाव कविता में प्रस्तुत किया है। जो सकारात्मक है।
@Kushagraverma
Kushagra verma
@Kushagraverma · 2:54
नकाब? उतरते रहे? उतरते रहे? उतरते रहे? रिश्तों की। मर्यादा? पता नही कहां विलुप्त होती गई? होती गई? होती गई? तो? आज के जमाने में। तो ये बहुत आम बात है। और हम चाह कर भी आज तक भी समझ नहीं पाए हैं कि हम खुद से? खुद से हम क्या चाहते हैं? हम खुद के बारे में भी नहीं समझ पाते? शायद? कहीं? न? कहीं? 1 नकाब हमारे अंतर मन में भी है कि हम खुद क्या चाहते? हते हैं? हैं हम? हमेशा खुद जीने से पहले यही सोचते है कि दूसरा क्या? सोचेगा? हम उसी नकाब को पहने हुए हम जीते रहते हैं? कि शायद सामने वाले को कुछ अच्छा लगेगा? तो वो नकाब? तो मतलब? समाज वालों ने ने? या हमारी जिम्मेदारियों ने? या हमारे अनुभवों ने? हमें? कितने? नकाब? तो हमें खुद को भी पहना दिए हैं। और उससे भी हम निकाल नहीं पा रहे? और कठिनाई? इसलिए तो आती है कि हमें समझ आए? कि रुको इस रफ्तार तार में भरी जिंदगी में रुक जाओ? और समझो कि सामने वाला क्या है? और उसके लिए तुम क्या हो? और शायद उससे प्यारी कोई अनुभूति नहीं होती है। क्योंकि उस दर्द में, उस जुबान में जो अपने को सहलाए? शायद वही भगवन का स्वरूप है? वही भगवन का स्वरूप है।
0:00
0:00