Jaya Chawla
@JayaC · 3:30
Tum jo aate to hum sau pardon se nihara karte
हम सरे शाम से शुरू करते। पलकें बिछाना। हम इस फर्श को अपने अरमानों से बुहारा करते। इस फर्श को अपने अरमानों से बुहारा करते। नजर न लग जाए। तुम्हें हमारी गोया रात से नजर न लग जाए। तुम्हें हमारी गोया रात से मांग कर स्याही? तुम्हारी नजर उतारा करते मांग कर स्याही? तुम्हारी। नजर तारा करते। 1 लम्हा भी न छल के? इस मुलाकात का? कहीं। 1 कतरा भी न छल के। इस मुलाकात का कहीं हजार?
Gunjan Joshi
@Bibliophile · 1:20
नमस्कार? जया जी? आपने ये जो शायरी पेशे नजर की है वो इतनी खूबसूरत और रोमानी है कि कल मैंने इसे सुना? तो मेरा दिन बन गया। मैं कल ही से इस पर जवाब देने की सोच रही थी पर मैं कर नहीं पाई। तो आज मैं इसके बारे में कुछ बोलना चाहूंगी। मुझे ऐसा लगता है कि इतनी रूमानी शायरी जो है वो आपके एक्सपीरियंस इतना ही इंसान लिख सकता है। और मैंने उर्दू शायरी के बारे में ये कहावत सुनी है की उर्दू शायरी तब तक मुकम्मल नहीं होती जब तक आपका हलक मीठा न हो जाए। तो आपकी शायरी के 11 लफ्ज ने हल क्या दिल भी मीठा कर दिया।