Jaya Chawla
@JayaC · 4:14
Apni peethh thapthapane ko kisi aur ka intezar kyun
deswelcasters 1 नई नज्म के साथ फिर आपके सामने। हूँ। इस बार? थोड़े मुख्तलिफ? मौजों के साथ फिर उम्मीद करती हूँ? क्या? आपको पसंद? आएगी? अर्ज है? अपनी पीठ थपथपाने को? किसी और का? इंतज़ार? क्यों? अपनी पीठ थपथपाने को? किसी और का? इंतज़ार? क्यों? शाबाशी? खुद को? दे? देना? इतना नागवार? क्यों? शाबाशी? खुद को? दे? देना? इतना? नागवार? क्यों? आखिर?
Hema Sinha
@HemaSinha1978 · 0:27
नमस्कार? जय जी मैं हेमा सिन्हा आपका स्वेल। सुना। मैंने। बहुत सुन्दर तरीके से आपने शायरी अर्ज करी। है। बहुत ही अच्छा लगा। सुनकर बोलने का अंदाज। आपका। बहुत ही अच्छा है। मुझे बहुत पसंद आई। आपकी शायरी। आगे भी आप ऐसे ही सुनाते रहिये। और हम सुनते रहे। बहुत ही सुन्दर धन्यवाद।
Kushagra verma
@Kushagraverma · 1:15
जाम। आपकी पार्टी बहुत ही बहुत बिल्कु छूलेने वाली है। और आपने जो विषय लिया है। और जो आपने कहा है कि सब कुछ हम करते हैं। सब कुछ जो हमारे लाइफ में हो रहा है। हम हम खुद करते हैं लेकिन फिर भी उसकी एप्लीसेशन के लिए हम दूसरों पर मोहताज हो चुके हैं। जब तक कोई कुछ कहेगा नहीं। हमें न किसी चीज की खुशी होती है न हमें। अपने आप में पूर्णता महसूस होती है। और अगर किसी ने कुछ अपशब्द कह दिए तो ऐसा लगता है जैसे हम हैं ही नहीं। हमारा होना ना होना? व्यर्थ है।