Vivek Shukla
@JAISHREEKRISHNA · 4:49
श्रीमद भगवतगीता अध्याय ३(भाग १)
जो जो आचरण करता है अन्य पुरुष भी वैसा ही आचरण करते हैं? तो भगवान कहते हैं हे अर्जुन। मुझे इन तीनों लोकों में न तो कुछ कर्तव्य है? और न ही कोई प्राप्त करने योग्य। वस्तु। अप्राप्त है? तो मैं भी कर्म में ही बरतता हूँ? श्री कृष्ण कहते हैं जरूरत? है? हैं? क्योंकि मैं अलस्य होकर कर्तव्य कर्म न करूं? तो मनुष्य सब प्रकार से मेरे ही मार्ग का अनुसरण करेंगे? अर्थात वो भी कर्तव्य? कर्म? करना? छोड़? देंगे? तो? मित्रों? ये हम आज इसको यहीं समाप्त करते हैं।
Prabha Iyer
@PSPV · 1:38
इट विल? रिमेन? क्लियर? एंड क्लीन? एंड इट विल? बी? डिवाइन? सो। हम भी बहुत खुश हो सकते हैं। आपका ये सुन के अक्स गर? आप? ऐसे पोस्ट कीजिएगा? तो हम भी सुनके। हमारा भी मन थोड़ा साफ हो जाए। और फिर से हमारा मतलब माइंड? जो है रिजुविनेट हो जाए। थैंक यू सो? मच जी नमस्कार?