Vivek Shukla
@JAISHREEKRISHNA · 4:33
श्रीमद भगवद्गीता अध्याय ९ ( भाग १)
विद्याओं का राजा? सम्पूर्ण? गोपनीयों का राजा? अति? पवित्र? अति? उत्तम, प्रत्यक्ष? फल? देने वाला? धर्ममय? और अविनाशी है? तथा करने में बहुत ही सुगम है? तब अर्जुन जी पूछते हैं फिर से ऐसे सुगम विद्या को सब के शब्द प्राप्त क्यों? नहीं? कर? लेते? तो? भगवान कहते हैं मनुष्य? इस ज्ञान, विज्ञान रूप धर्म पर, श्रद्धा विश्वास नहीं करते? इसलिए वह मेरे को प्राप्त न होके? मौत रूपी संसार के मार्ग में लौटते रहते हैं? अर्थात?
Vipin Kamble
@Vipin0124 · 2:36
शुद्ध, विनम्र, भाव से ईश्वर की चेतना को एकजुट होकर, सच्चा योग के साथ प्रणाम करो। भक्ति के प्रदर्शन में जो भी अहंकार के अवशेष होंगे, वे सभी छिन्नभिन्न हो जाएंगे। और अहंकार मुक्त होकर भक्ति में डूबे हुए। हृदय से व्यक्ति अपने सभी विचारों और कार्यों को सर्वोच्च रूप से समर्पित कर देता है। श्री कृष्ण जी ने बड़े ही मनोयोग के साथ, अर्जुन जी को भक्ति। योग के माध्यम द्वारा पूर्ण संवाद, निश्चित रूप से ईश्वर, साक्षात्कार की प्राप्ति का परिणाम होगा।