Vivek Shukla
@JAISHREEKRISHNA · 4:24
श्रीमद भगवद्गीता अध्याय १२
जो संसार से उपराम रहता है, जिसके हृदय में हलचल नहीं होती। तथा जो भोग और संग्रह के लिए किए जाने वाले संपूर्ण, कर्मों का सर्वधा त्यागी है। ऐसे भक्त मुझको प्यारे हैं? अर्जुन जी फिर से पूछते हैं? और कौन? आपको प्यारा है? भगवान? फिर? कहते हैं? जो न तो अनुकूलता के प्राप्त होने पर हर्षित होता है? और न प्रतिकूलता के प्राप्त होने पर द्वेश करता है। तथा जो न दुखदाई परिस्थिति के प्राप्त होने पर द्वेश करता है। और जो न दुखदाई परिस्थिति के प्राप्त होने पर श करता है? और न सुखदायी परिस्थिति की इच्छा ही करता है। तथा जो शुभ अशुभ, कर्मों में राग द्वेश का त्यागी है?