@JAISHREEKRISHNA
Vivek Shukla
@JAISHREEKRISHNA · 4:46

श्रीमद भगवतगीता अध्याय ५(भाग १)

के उद्देश्य से कर्म करता है। अतः वह लिप्त नहीं होता परन्तु कर्मयोगी किस? उद्देश्य से कर्म करता हुआ लिप्त नहीं होता? तो? कहते हैं कर्मयोगी। इन्द्रियां शरीर बुद्धि के साथ ममता न करके और कर्मयोगी कर्मफल की इच्छा का त्याग करके सदा रहने वाली परम शांति को प्राप्त हो जाता है। परंतु जो योगी नहीं है वह कामना के कारण कर्मफल में आशक्त होकर बंद जाता है। ये कहते हैं और अगले भाग में हम इसकी पूरी जो सार है वो कह? देंगे? तो? तब तक के लिए? जय? श्री कृष्ण आपका विवेक? शुक्ला।

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@Vipin0124
Vipin Kamble
@Vipin0124 · 1:52

@JAISHREEKRISHNA

नमस्कार? विवेक? जी? जय? श्री कृष्ण। आपने? जो अध्याय 5। भाग 1। के विषय में बताया। बेहद खूबसूरत था। कर्म योग। इसके विषय में आपने वर्णन किया। अर्जुन। जब थोड़े से भ्रमित हैं कि हे श्रीकृष्ण। आपने कर्म संन्यास कर्मों के त्याग का मार्ग? इसकी प्रशंसा की। अब आप? कर्म योग भक्ति के साथ काम करने की सलाह। दोनों ही विषयों के बारे में बात कर रहे हैं। कृपया? आप? मुझे? निर्णायक रूप से बताएं? इन दोनों में से कौन सा मार्ग लाभदायक? सिद्ध? होगा?
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