@JAISHREEKRISHNA
Vivek Shukla
@JAISHREEKRISHNA · 4:50

श्रीमद भगवद्गीता अध्याय ८( भाग १)

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जो मनुष्य अभ्यास योग से, युक्त? अनन्य चित से, परम, दिव्य? पुरुष का? अर्थात? मेरे निराकार रूप का चिंतन करता हुआ शरीर छोड़ता है? वह मेरे उसी रूप को प्राप्त हो जाता है। अब आगे कहते हैं? जो निर्गुण निराकार है? वो क्या है? जो? साधक? अंतकाल में? संपूर्ण? इंद्रियों को वश में करके? मनुष्य मन को हृदय में स्थित करके? और अपने प्राणों को मस्तिस्क में धारण करके, योग धारण में स्थित हुआ? ओम? इस प्रकार अक्षर ब्रम का उच्चारण? और मेरे निर्गुण? निराकार स्वरूप का चिंतन करता हुआ शरीर छोडता है? वह परम?

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@Vipin0124
Vipin Kamble
@Vipin0124 · 1:29

@JAISHREEKRISHNA

नमस्कार विवेक जी अक्षर ब्रह्म योग। आपने जो श्रीमद भागवत गीता के अध्याय 8। का वाचन किया। अभी, ब्रह्म? अध्यात्म और कर्मादि के विषय में। श्री अर्जुन द्वारा भगवान श्री कृष्ण से पूछे गए सभी प्रश्नों का उन्होंने बहुत ही शांतता के साथ जिस प्रकार से उत्तर दिया। प्रत्येक प्रश्न के प्रत्येक उत्तर का आपने बहुत ही सुंदर शब्दों में सरल। भाव के संग विवरण दिया। कि 1। आम जैसा आम। मनुष्य उनके बीच में हुए वार्तालाप को शांतिपूर्ण ढंग से समझ सके कि ईश्वर क्या समझाना चाह रहे थे। अर्जुन को? और उनके द्वारा दिए गए उस संदेश को हम अपने नित जीवन में किस प्रकार से प्रयोग में ला सकते हैं? बहुत बहुत धन्यवाद। आपका।
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