@JAISHREEKRISHNA
Vivek Shukla
@JAISHREEKRISHNA · 4:34

श्रीमद भगवद्गीता अध्याय १८ (भाग २)

जो सात्विक राजसिक? और तामसिक है? तो उसके लिए जान? लेते हैं? तो? सात्विक कर्म? जो कर्म? जो नियत कर्म। फल? इच्छा से रहित। मनुष्य? के द्वारा। राग? द्वेश? और कर्तव्य? अभिमान से रहित होकर किया जाता है। वह सात्विक कर्म हो गया? और तामस कर्म क्या? हो गया? मुंह? पूर्वक आरंभ किया जाता है? वह कर्म? तामस? कर्म? और राजस्व? कर्म। क्या है? भोगों? की इच्छा वाले?

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